Saturday, November 11, 2023

कोविड

इस दहशत से निकाले वो दरवाज़े तलाशता हूँ
मै रोने के लिए अब जनाज़े तलाशता हूँ

जिंदगीही ना रही तो उम्मीद कहाँ से लाये?
मैं ख्वाइशें पिरोने के लिए मुर्दे तलाशता हूँ

ये कैसी हिचकियाँ आती है, कौन करता है याद?
मै अस्पताल, शमशान, कब्रस्तान सब तलाशता हूँ

मर चुका है निज़ाम और रहबर का जमीर भी
इस वतन पे ओढ़ने के लिए एक कफ़न तलाशता हूँ

- कौस्तुभ

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